दिलोदिमाग के दायरे

दिमाग फतूरी है। मान लिया है। सुबह सुबह टहलने लगा। इस लॉकडौन में बस उसको ही इज़ाज़त रही घूमने फिरने की। वैसे तो मैं सिर्फ दिमाग की बात कर रहा था पर गोते तो दिल भी लगा रहा था? अब यह क़िताबी  सहूलियत ही सही के इनको अलग अलग कर रखा है। जब दायरे के बाहर की कोई बात हो तो दिल के हवाले से कर लो नहीं तो बेचारे दिमाग को दौड़ाते रहो। कुछ समय से काम में व्यस्य रहा और लिखने का मौका नहीं मिला। कमबख्त काम की कमी कमसकम मुझे तो सालती ना थी। फिर भी कम ना हुआ। वैसे कोई काम की बात नहीं कर रहा हूँ, आप कहीं उसका इंतेज़ार तो नहीं कर रहे?
मैं इधर दिमाग-ओह-दिल को टहलाने निकला तो सोचा आप से भी दो बात कर लूँ।

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