बेरोज़गारी

बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं था ना कोई फ़ोटो लिया, या कोई ड्राइंग करी। कोई किताब नहीं पढ़ी, कोई कविता नहीं सुनी। कोई कोफ्त नहीं है। कोई कैफियत भी नहीं है। पन्ना हाशिया हो रहा है। कलम जंग हो रही है। दवात दरिया हो गई है। सब स्याही बेरोजगार बरस, बह कर समुंदर हो रही है। मैने हल्के से कहा, यही सही है। तुम्हारे इश्क के रोज़गार से तो बहुत बेहतर है।

| Mandarim | Goa | Manas | 2020 |

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