एक घड़ी रेत / The moment sand
पेंसिल कागज़ के टुकड़े पर दिन रात फिसलती रही। कितने गाने स्पोटिफाई पर बज गए पता नहीं चला। किसने क्या गाया क्या बजाया पता नहीं। लकीरें क्या शक्ल लेंगी, क्या परवाह। फोन बजा और बंद हो गया। कोई मेरे शहर में आया और कौन चला गया। तुम्हारे और मेरे बीच बस बेआवाज बेशब्द बात होती रही। रात होती रही दिन होते रहे। युग बदल गए। घड़ी रेत हो गई। शब्द होते तो मायने होते। माप होता, हदें होती। मोलभाव होता। सब वही मेरा सही तुम्हारा गलत होता। शब्द नहीं है। बस कागज़ पर सरकती कुछ बेमतलब लकीरें हैं।
बेमतलब सकून है।
The pencil kept slipping across the paper. Spotify kept playing incoherently. Who sang what, I didn’t hear. What shape the lines will take, I didn’t care. the phone buzzed and went silent. Someone came to the city, and who left. You and I kept talking, silent, wordless. Nights and days passed. Time seized to exist. The clock turned into sand. were there words, they would have meant. They would be measured and limited. Equated and balanced. I would be right, and you, wrong.
Aah… but there are no words. only mind-free lines on the paper.
it’s mind-free peace.